आप के दिल को मिरे दिल से कहीं प्यार न हो ज़िंदगी मेरी तरह आप की दुश्वार न हो मानने से मिरी डर है उन्हें इंकार न हो ये मिरी अर्ज़-ए-तमन्ना कहीं बे-कार न हो शौक़ से रब्त-ए-मोहब्बत को बढ़ाएँ लेकिन हद से बढ़ कर ये मोहब्बत कहीं आज़ार न हो ज़िंदगी रश्क के क़ाबिल हो मोहब्बत में अगर दिल की हर बात पे इक़रार हो इंकार न हो मेरे अरमानों की दुनिया का ख़ुदा-हाफ़िज़ हो आप के दिल में अगर जज़्बा-ए-ईसार न हो ऐश चूमेगा क़दम रंज के दिन टलने दे मेरे दिल उन की मोहब्बत से तू बेज़ार न हो ज़िंदगी यूँ ही भटकती रहे मंज़िल के लिए एक से एक को दुनिया में अगर प्यार न हो हिज्र के अब तो तसव्वुर से ही दम घुटता है में तो मर जाऊँ जो पहलू में मिरे यार न हो मैं समझता हूँ वफ़ादार-ए-मोहब्बत उस को जो मोहब्बत में वफ़ाओं का तलबगार न हो रब्त की चाशनी का किरकिरा हो जाए मज़ा लुत्फ़-आमेज़ मोहब्बत में जो तकरार न हो उस पे होते हैं ज़माने के करम ऐ 'अफ़ज़ल' इक ज़रा से जो करम का भी रवादार न हो