आप के ख़ूँ में अदाकारी कहाँ से आ गई आप नादाँ थे समझदारी कहाँ से आ गई इस चमन के पेड़-पौदे हम ने सींचे ख़ून से आप के हाथों में ये आरी कहाँ से आ गई जिन बुज़ुर्गों ने लुटाए जान-ओ-दिल इस्लाम पर उन के बच्चों में ये ग़द्दारी कहाँ से आ गई दर्द अज़िय्यत क़त्ल-ओ-ग़ारत आप का शेवा रहा फिर अचानक ये रवादारी कहाँ से आ गई रूठना पैहम मनाना छोड़ जाना राह में आप में जाने अदाकारी कहाँ से आ गई उस ने देखा प्यार से तो मिल गई राहत मुझे मैं थी हैराँ उस में दिलदारी कहाँ से आ गई ऐ 'अना' तुम मत गिराना अपने ही किरदार को उन को कहने दो कि ख़ुद-दारी कहाँ आ गई