आप के साथ हो लिए साहब बोलिए कुछ तो बोलिए साहब एक घंटे के साठ मिनटों में सैंकड़ों बार रो लिए साहब लोग तो लोग थे मगर ये क्या आप भी साथ हो लिए साहब ख़ामुशी कान खा गई है मिरे रस समाअ'त में घोलिए साहब बंद-ए-ग़म से मुझे रिहाई मिले अपनी बाँहों को खोलिए साहब हम ने आँचल पे हिज्र काढ़ लिया और आँसू पिरो लिए साहब आस्तीं में रहा नहीं कुछ भी पल चुके हैं संपोलिए साहब आप का दिल हमारा मस्कन है धड़कनों को टटोलिए साहब मत अटकिए मियान-ए-गोयाई हर क़दम पर न डोलिए साहब