ज़माना एक वो भी था सहारे थे तुम्हारे हम खड़े हैं अब ज़रा देखो दिवारों के सहारे हम बता कर एक मिसरे में नदी सा हुस्न वो तेरा मिले फिर दूसरे मिसरे उसी दरिया किनारे हम किसी से जो नहीं हारा वो अपनों से तो हारा है तुम्हारे सामने जैसे मोहब्बत फिर से हारे हम तुम्ही हर रोज़ मुझ को ख़ुद से थोड़ा दूर करते थे फ़लक तक दूर जब पहुँचे हुए हैं फिर सितारे हम