ये एहतियात इश्क़ पे लाज़िम सदा रहे हर-चंद क़ुर्बतें हों मगर फ़ासला रहे हाजत नहीं की जाम-ओ-सुबू मय-कदा रहे दिल का तिरी निगाह से बस राब्ता रहे माह-ओ-नुजूम-ओ-शम्स की थम जाएँ गर्दिशें ठहरे तिरी नज़र तो ज़माना रुका रहे मामूर खुशबुओं से रहे गुलशन-ए-वजूद बस इक तुझी को ज़ेहन अगर सोचता रहे रानाई-ए-जमाल का आलम न पूछिए इक बार देख ले जो उसे देखता रहे फ़रियाद ले के जाएँ भी अहल-ए-चमन कहाँ जब बाग़बाँ ख़ुद अपना चमन लूटता रहे कुछ देर और ऐ शब-ए-हिज्राँ ठहर अभी कुछ देर और दर्द का तूफ़ाँ उठा रहे