बाद-ए-सहरा को रह-ए-शहर पे डाला किस ने तार-ए-वहशत को गरेबाँ से निकाला किस ने मुख़्तसर बात थी, फैली क्यूँ सबा की मानिंद दर्द-मंदों का फ़साना था, उछाला किस ने बस्तियों वाले तो ख़ुद ओढ़ के पत्ते, सोए दिल-ए-आवारा तुझे रात सँभाला किस ने आग फूलों की तलब में थी, हवाओं पे रुकी नज़्र-ए-जाँ किस की हुई, राह से टाला किस ने काँच की राह पे इक रस्म-ए-सफ़र थी मुझ से ब'अद मेरे बुना हर गाम पे जाला किस ने