आरज़ू है न कोई हसरत है याद ही उस की अब ग़नीमत है ग़म की दौलत ही मेरी दौलत है इस में भी मुझ को ऐन राहत है देखिए कौन कामराँ निकले मैं हूँ या अब मेरी मुसीबत है क्यों पशेमाँ हो दिल गुनाहों पर उस की बख़्शिश है उस की रहमत है उस से क्या हो मुझे उमीद-ए-वफ़ा बेवफ़ाई ही जिस की आदत है ग़म में मसरूर दर्द में शादाँ दिल की फ़ितरत अजीब फ़ितरत है हर ज़बाँ पर है अब हमारा नाम ऐ मोहब्बत तिरी इनायत है हो चुकी इंतिहा जफ़ाओं की अब तिरे लुत्फ़ की ज़रूरत है गुलिस्तानों का है मक़ाम अपना ख़ारज़ारों की अपनी अज़्मत है ग़म न हो तो है ज़िंदगी बे-कैफ़ ग़म ही से ज़िंदगी इबारत है दिन बहारों के भी न रास आए मेरे ख़ालिक़ ये मेरी क़िस्मत है शोरिशें ख़त्म हैं शबाब के साथ अब वो दिल है न वो तबीअत है मौत से लोग क्यों हिरासाँ हैं ज़िंदगी भी तो इक मुसीबत है कोई बेगाना हो कि अपना हो हर किसी से हमें मोहब्बत है ग़म से बेज़ार किस लिए हो 'कँवल' ग़म ही से आदमी की इज़्ज़त है