मिरा बिछड़ा राँझन मोड़ सजन

मिरा बिछड़ा राँझन मोड़ सजन
मुझे चाह न कोई और सजन

मैं ने ओढ़ा रंग-ए-सियाह फ़क़त
दिए कंगन चूड़ी तोड़ सजन

मैं ने तुझ से सच्चा इश्क़ किया
दी सारी दुनिया छोड़ सजन

तिरी याद से बाहर निकलूँ मैं
मुझे आ कर यूँ झिंझोड़ सजन

मैं हर दरगाह पे जाऊँगी
हो सिंध हो या लाहौर सजन

कोई धागा तुझ से जोड़े तो
मिन्नत की बाँधूँ डोर सजन

चल मुझ से इश्क़ दोबारा कर
चल फिर से नाता जोड़ सजन

चल नाम न दे इक शाम ही दे
मिरी बात पे कर कुछ ग़ौर सजन

तू ने माँगा हिज्र-ए-जुदाई बस
कुछ माँग के तकता और सजन

मिरा जुर्म मोहब्बत है साईं
मैं हूँ ज़िंदा-दरगोर सजन

तिरी दीद मिरा हज्ज-ए-अकबर
तिरा नाम पढ़ूँ हर पोर सजन

तुझे मेरी बात का मान नहीं
जा रहने दे बस छोड़ सजन

क्यूँ हरजाई को याद करे
चल छोड़ 'कँवल' बस छोड़ सजन


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