आसाइश की चाह न कर मुश्किल अपनी राह न कर कुफ़्र-ओ-शिर्क से रब्त न रख फ़र्द-ए-अमल को सियाह न कर मुश्किल में ले सब्र से काम मुश्किल में तू आह न कर माल-ए-मुफ़्त हो पेश अगर उस पर कभी निगाह न कर झाँक गरेबाँ में अपने वाइज़ हमें तबाह न कर दे कर दर्स तअ'स्सुब का क़ौम को यूँ गुमराह न कर कर न किसी की हक़-तलफ़ी ये संगीन गुनाह न कर ख़ुश रह 'शाज़' किफ़ायत में ऐश की हरगिज़ चाह न कर