आसेब का वहशत के आँखों पे इजारा है तारीक मनाज़िर हैं जुगनू है न तारा है क्या रुत है कोई पंछी शाख़ों पे नहीं आता साकित हैं शजर सारे बे-रंग नज़ारा है जब शहर में आया है मुझ से भी मिलेगा वो इस आस में ख़ुद को भी घर को भी सँवारा है कुछ अश्क उदासी के हमराह मुसाफ़िर हैं दरिया में तग़ाफ़ुल के चाहत का शिकारा है भरपूर तअ'ल्लुक़ का दावा तो नहीं करते कुछ हम भी उसी के हैं कुछ वो भी हमारा है दिन भर का थका हारा फिर घर की तरफ़ पल्टा ख़ुश-रंग तमन्ना ने हर शाम पुकारा है