आशिक़-ए-गेसू-ओ-क़द तेरे गुनहगार हैं सब मुस्तहिक़ दार के फाँसी के सज़ा-वार हैं सब पास अतिब्बा को है मायूस परस्तार हैं सब तेरे बीमार-ए-मोहब्बत के बद-आसार हैं सब दिल-दही के भी नहीं तर्ज़ से वाक़िफ़ असला ये हसीनान-ए-जहाँ नाम को दिलदार हैं सब अब ये सूरत है मोहब्बत में तुम्हारी ऐ जान अपने बेगाने मिरी शक्ल से बेज़ार हैं सब ज़ुल्म-ए-सय्याद सहा जाए यकायक क्यूँकर हम असीरान-ए-क़फ़स ताज़ा गिरफ़्तार हैं सब हुस्न यकता-ए-दो-आलम है तिरा ही ऐ दोस्त तेरी वहदत के मुक़िर काफ़िर-ओ-दीं-दार हैं सब एक भी बात न दिल ले के निबाहेंगे हुज़ूर ये ज़बानी ही फ़क़त आप के इक़रार हैं सब बे-ज़बानी से हैं मजबूर नहीं सुन लेते क़ाइल इस आबला-पाई के मिरे ख़ार हैं सब न पड़ो फ़िक्र-ए-दहान-ओ-कमर-ए-यार में तुम कोई वाक़िफ़ नहीं ये ग़ैब के असरार हैं सब उस में ताऊस-ए-चमन को हुई या कब्क-ए-दरी ऐ परी-ज़ाद तिरे कुश्ता-ए-रफ़्तार हैं सब बारिश-ए-गिर्या के है साथ हवा आँखों की ख़ाना-ए-दिल की ख़राबी के ये आसार हैं सब क़ैस-ओ-फ़रहाद को सौदा था तिरा इश्क़ न था तेरे दीवाना-ए-जाँ-बाख्ता होशियार हैं सब यही इंसाफ़ तिरे अहद में है ऐ शह-ए-हुस्न वाजिब-उल-क़त्ल मोहब्बत के गुनहगार हैं सब उन बुतों से नहीं उम्मीद ख़ुदा-तरसी की रहम दिल उन में नहीं एक सितमगार हैं सब बात किस तरह दम-ए-शिकवा हो सरसब्ज़ अपनी एक अपना नहीं वाँ उन के तरफ़-दार हैं सब कुछ उन्हें क़द्र नहीं नक़्द-ए-दिल-ए-आशिक़ की हसीनान-ए-जहाँ ज़र के तलबगार हैं सब किस तवक़्क़ो पे कोई बाग़-ओ-मकाँ बनवाए क़ब्र में एक न काम आएगा बेकार हैं सब उन दिल-आवारों के अल्ताफ़ पर ऐ दिल तू न भूल रंज कल देंगे यही आज जो ग़म-ख़्वार हैं सब फ़िक्र-ए-ईज़ा में मिरी कुछ नहीं तन्हा वही शोख़ नाज़-ओ-अंदाज़-ओ-अदा और पए आज़ार हैं सब चीदा माशूक़ों के औसाफ़ किए हैं मौज़ूँ मुंतख़ब करने के क़ाबिल मिरे अशआर हैं सब तुझ सा ख़ुश-वज़अ' ख़ुश-अंदाज़ न देखा अब तक यूँ तो मा'शूक़ ज़माने के तरह-दार हैं सब भूले हैं गर्दिश-ए-मीना-ए-फ़लक का नैरंग अहल-ए-ज़र जितने हैं मस्त-ए-मय-ए-पिंदार हैं सब दोस्ती कर के 'क़लक़' उन से बहुत पछताता दुश्मन-ए-जाँ मिरे ख़ूबान-ए-जफ़ा-कार हैं सब