आशियाने की जब भी याद आई एक बिजली सी दिल में लहराई यूँ भी देखा गया है महफ़िल में वो तमाशा थे हम तमाशाई तेरे आँचल का जिस पे साया हो उस गदा पर निसार दाराई हम ने दामन ही जा लिया उन का लोग करते रहे जबीं-साई माह-ओ-अंजुम में लाला-ओ-गुल में हम को तेरी झलक नज़र आई दोस्त आए थे मुझ को समझा ने हाल देखा तो आँख भर आई छा गईं मस्तियाँ फ़ज़ाओं में तेरे दामन की जब हवा आई जो मोहब्बत में मिट गया 'साबिर' उस ने मर कर भी ज़िंदगी पाई