नया सूरज नया दरिया नई कश्ती बनाते हैं नई तस्वीर में दुनिया ज़रा मैली बनाते हैं ज़रा सा क्यूट कर देते हैं अंदेशों के भूतों को मगर उम्मीद की परियाँ ज़रा अगली बनाते हैं मुकम्मल सोच लेते हैं चलो इस बार फिर तुझ को चलो इस बार भी सूरत तिरी आधी बनाते हैं यक़ीनी बात है बातिन की तारीकी न कम होगी तसल्ली के लिए ज़ाहिर को नूरानी बनाते हैं जहाँ ख़्वाबों का कम्बल ओढ़ कर सोती हैं आवाज़ें वहीं रातों में कुछ दीवाने ख़ामोशी बनाते हैं वो कंकर फेंकते हैं झील में क्या सोच कर 'साबिर' फ़ना करते हैं ख़ुद को या कि ला-सानी बनाते हैं