आश्ना शक्ल ना-आश्ना आदमी ख़ुद-फ़रेबी में है मुब्तला आदमी जाने किन किन इनायात से टूट कर झेलता है शिकस्त-ए-अना आदमी कितना मुश्किल है मर्दुम-शनासी का फ़न कितना घायल था वो मसख़रा आदमी किस से अहवाल की कोई पुर्सिश करे दौड़ता भागता हादसा आदमी इक हबाब-ए-रवाँ मौज-ए-सय्याल पर है मगर किस क़दर ख़ुद-नुमा आदमी यूँ तअ'ल्लुक़-शिकन है ये तहज़ीब-ए-नौ बन गया इक जज़ीरा-नुमा आदमी ढूँड लाए थे दैर-ओ-हरम से अभी फिर कहाँ खो गया सर-फिरा आदमी अपने मस्लक का वो आख़िरी फ़र्द था खोटी दुनिया में 'अफ़ज़ल' खरा आदमी