आसमाँ तक जो नाला पहुँचा है दिल की गहराइयों से निकला है मेरी नज़रों में हश्र भी क्या है मैं ने उन का जलाल देखा है जल्वा-ए-तूर ख़्वाब-ए-मूसा है किस ने देखा है किस को देखा है हाए अंजाम इस सफ़ीने का नाख़ुदा ने जिसे डुबोया है आह क्या दिल में अब लहू भी नहीं आज अश्कों का रंग फीका है जब भी आँखें मिलीं उन आँखों से दिल ने दिल का मिज़ाज पूछा है वो जवानी कि थी हरीफ़-ए-तरब आज बर्बाद-ए-जाम-ओ-सहबा है कौन उठ कर चला मुक़ाबिल से जिस तरफ़ देखिए अंधेरा है फिर मिरी आँख हो गई नमनाक फिर किसी ने मिज़ाज पूछा है सच तो ये है 'मजाज़' की दुनिया हुस्न और इश्क़ के सिवा क्या है
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