आँसू जो तिरी याद में पलकों से ढले हैं उजड़ी हुई रातों की मुंडेरों पे जले हैं हम ने कभी देखा नहीं साहिल का तमाशा हम लोग जो तूफ़ान के साए में पले हैं ये ज़ख़्म किसी ख़ार से हम ने नहीं पाए ये दाग़ हमें फूल की ख़ुशबू से मिले हैं सीने से दबाए हुए इक दर्द का 'नग़्मा' हम शहर-ए-निगाराँ से बहुत दूर चले हैं