आँसुओं की एक चादर तन गई है देखने में रौशनी ही रौशनी है सूखे पत्ते सब इकट्ठे हो गए हैं रास्ते में एक दीवार आ गई है ग़म का रेला ज़ेहन ही को ले उड़ा है सोचिए तो आँधियों की क्या कमी है चुल्लू-चुल्लू रौशनी को पी रहा हूँ मौज-ए-दरिया क़तरा क़तरा चाँदनी है रात में धुनका हुआ सूरज पड़ा था दिन में 'माजिद' धूप काली हो गई है