चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे उतार दे चाँद उस के दर पर सियाह दिन मेरे घर में रख दे कहीं कहीं कोई रब्त-ए-मख़्फ़ी इबारत-ए-मुन्तशर में रख दे गुरेज़ पर हैं निशान सारे तरफ़ भी कोई सफ़र में रख दे तलब तलब आइना-सिफ़त है ख़राब-ओ-ख़स्ता हैं अक्स सारे ये नेकियाँ भी हैं सर-बरहना लताफ़त-ए-ख़ैर शर में रख दे नशात-आवर है ये उदासी का एक उड़ता हुआ सा लम्हा मबादा ताक़-ए-रजा हो वीराँ शरारा इक चश्म-ए-तर में रख दे ये सर्फ़-ओ-हासिल-गज़ीदा दुनिया न दिन ही मेरे न मेरी रातें कहाँ तलक देखता ही जाऊँ समाअतें कुछ नज़र में रख दे मिरे ख़ुदा मेरे जिस्म-ओ-जाँ के ख़ुदा मिरे हाथ झड़ न जाएँ दुआ तह-ए-संग-ए-लब गड़ी है असर ज़रा सा असर में रख दे बदन है या क़िला-ए-हवा है कहीं से आऊँ कहीं से जाऊँ हज़ारों रख़्ने पड़े हुए हैं उठा के दीवार दर में रख दे