आती नहीं है मंज़िल-ए-दार-ओ-रसन अभी फिर भी चला हूँ बाँध के सर से कफ़न अभी सहरा-नवर्दियाँ हैं न सैर-ए-चमन अभी शायद जुनूँ से दूर है ज़ौक़-ए-वतन अभी साए में हूँ मैं क्या शजर-ए-साया-दार के हर क़स्र मेरे हाल पे है ख़ंदा-ज़न अभी ये बात क्या कि उक़्दा-ए-मुश्किल न खुल सके पहुँचा नहीं उरूज पे दीवाना-पन अभी महफ़िल में छेड़-छाड़ पतंगो ये बे-महल है वक़्फ़-ए-गिर्या शम्अ' सर-ए-अंजुमन अभी हम सुन सके न क़ुलक़ुल-ए-मीना के शोर में कुछ कह रहा था साग़र-ए-तौबा-शिकन अभी तस्वीर से किसी की 'मुसव्विर' है हम-कलाम थम जा ज़रा तू गर्दिश-ए-चर्ख़-ए-कुहन अभी