कोई रस्ते का पत्थर बन गया है बिछड़ना ही मुक़द्दर बन गया है जहाँ बिछड़े थे हम इक बार मिल के किसी का उस जगह घर बन गया है उसे करना थी बेटी की हिफ़ाज़त सिपाही से वो लश्कर बन गया है मिरे दिल ने बहुत झेले हैं सदमे अब इस दीवार में दर बन गया है तिरा लहजा है ज़हरीला कुछ इतना तिरा हर लफ़्ज़ नश्तर बन गया है रवानी आँसूओं की कह रही है जो दरिया था समुंदर बन गया है यहाँ फ़ुटपाथ पर गज़ भर का रक़्बा किसी मुफ़्लिस का बिस्तर बन गया है तिरे रुख़्सार पर जिस वक़्त ढलका वो इक आँसू भी गौहर बन गया है