नसीब जिन का जहाँ था वहीं पे उतरे हैं ज़मीं के थे जो परिंदे ज़मीं पे उतरे हैं फ़ज़ा में तैर रही है वफ़ाओं की ख़ुशबू ज़रूर हंस के जोड़े कहीं पे उतरे हैं तुम्हारी बज़्म को देखा तो ये हुआ महसूस कि जैसे चाँद सितारे ज़मीं पे उतरे हैं मुझे यक़ीं था परिंदे भटक नहीं सकते इसी लिए जहाँ चाहा वहीं पे उतरे हैं दुआएँ माँ की अभी ख़त्म भी न हो पाईं लगा फ़रिश्ते फ़लक से ज़मीं पे उतरे हैं अज़ाब आए हैं जितने ज़मीन-ए-उल्फ़त पर करम भी इस से ज़्यादा यहीं पे उतरे हैं लगाएँ शौक़ से लेबल वो प्यार का हक़ है अगर वो पूरे दिलों के यक़ीं पे उतरे हैं