आतिश-ए-इश्क़ ने ऐसा ही जलाया मुझ को कि जहन्नुम ने भी मुँह देख छुपाया मुझ को बे-ख़बर कर दिया कौनैन से यारो पल में गर्दिश-ए-चश्म से जब जाम पिलाया मुझ को मैं कहा दिल से कि क्या तुझ को हुआ वो बोला एक बाज़ी में इन आँखों ने हराया मुझ को चश्म उस शोख़ की शोख़ी का बयाँ शोख़ी है तरफ़तुल-ऐन में दिल ले के खिजाया मुझ को दिल में था शौक़ का इज़हार-ओ-बयाँ सब कीजे लेकिन उस चश्म लजीली ने लजाया मुझ को अब्र-ए-बाराँ का बहुत शोर-ओ-शग़ब देखा था ईं पे उस अश्क के तूफ़ाँ ने बहाया मुझ को लख़्त-ए-दिल बोला 'अली' चश्म की तक़्सीर रवा दार-ए-मिज़्गाँ पे अबस तू ने चढ़ाया मुझ को