दर्द-ओ-ग़म कुछ बयाँ किया न गया चाक सीने का पर सिया न गया मर गया देखते ही मैं अफ़्सोस हैफ़ है जी बदन में आ न गया हाथ उस बेवफ़ा-ओ-बद-ख़ू के देखती आँखों जी दिया न गया आह-ओ-अफ़्सोस तेरे दर्द में दिल मर गया उस सते जिया न गया शौक़ में वस्ल के तिरे हर-दम जाम-ए-ग़म किस सते पिया न गया बैठ ऐ तंग-दिल 'अली' को भी एक बोसे से ख़ुश किया न गया