उम्र भर की कोशिश-ए-नाकाम पर हँसता हूँ मैं उस के हर आग़ाज़ हर अंजाम पर हँसता हूँ मैं ये भी गर्दिश में है साक़ी मेरी क़िस्मत की तरह तेरे मयख़ाने में दौर-ए-जाम पर हँसता हूँ मैं शादमानी वस्ल की हो या हो फ़ुर्क़त का अलम जो भी मिल जाए उसी इनआ'म पर हँसता हूँ मैं तोहमतें मुझ पर हैं कितनी ऐ जमाल-ए-रू-ए-दोस्त और मेरा दिल कि हर इल्ज़ाम पर हँसता हूँ मैं दिन तो कट जाता है 'अख़्तर' पाँव के चक्कर के साथ जो न पहुँचे सुब्ह तक उस शाम पर हँसता हूँ मैं