अब इस आह-ओ-फ़ुग़ाँ से ऐ दिल-ए-नाकाम क्या होगा ये पहले सोचना था इश्क़ का अंजाम क्या होगा बजाए दिल नज़र आता है इक शो'ला सा पहलू में ये आग़ाज़-ए-मोहब्बत है तो फिर अंजाम क्या होगा हुजूम-ए-ग़म से घबरा कर मैं अपनी जान तो दे दूँ मगर तेरा बता ऐ गर्दिश-ए-अय्याम क्या होगा ख़ुदाया आज मेरे ज़ब्त-ए-ग़म की लाज रह जाए सहर ही जब क़यामत है तो फिर ता-शाम क्या होगा 'ज़िया' ये दौर-ए-आज़ादी सुनहरा ही सही लेकिन हमें मालूम है इस दौर का अंजाम क्या होगा