जुनूँ से होश से वहम-ओ-यक़ीं से पता कुछ तो चले अपना कहीं से कभी तन्क़ीद पर होती नहीं है हमें ना-ख़ुश-गवारी नुक्ता-चीं से सिफ़त यकसाँ है क्या शे'र-ओ-नज़र में हमें ये पूछना है नुक्ता-चीं से कोई कज तो मिरे दिल की नहीं है नज़र आती है जो दाग़-ए-जबीं से सुकून-ए-दिल जहाँ में छान मारा नहीं मिलता 'ज़िया' साहिब कहीं से