ज़िंदगी जैसे बद-दुआ' साईं कोई ए'जाज़ कर दिखा साईं ग़म की चादर लपेट कर देखा सारी दुनिया है बेवफ़ा साईं गूँगे बहरों के शहर में आख़िर कौन सुनता तिरी सदा साईं पास पैसा तो सारी दुनिया दोस्त वर्ना कोई नहीं सगा साईं जिस की फ़ितरत में रहज़नी थी फ़क़त वो बना सब का रहनुमा साईं चल पड़े जिस तरफ़ को जी चाहा अपनी मंज़िल न रास्ता साईं फिर पियेगी ज़मीं लहू 'शहज़र' शहर मैदान-ए-कर्बला साईं