अब जो तुम से नहीं मिल पाए तो मुश्किल होगी फ़स्ल-ए-गुल यूँही गुज़र जाए तो मुश्किल होगी जिस को मर मर के भुलाया था बड़ी मुश्किल से फिर कहीं याद वो आ जाए तो मुश्किल होगी फिर वो पुरवाई चली ऐ मिरे दिल ख़ैर नहीं फिर कोई चोट उभर आए तो मुश्किल होगी मैं नहीं देखती इस डर से किसी की जानिब आँख से दिल में समा जाए तो मुश्किल होगी ज़ुल्मत-ए-यास कोई कम नहीं और उस पे अगर शाम के गहरे हुए साए तो मुश्किल होगी निकले जाते हैं मिरे दिल के सब अरमान 'नज़र' घर जो वीरान ये हो जाए तो मुश्किल होगी