अब के बरस हूँ जितना तन्हा पहले कहाँ था उतना तन्हा दुनिया एक समुंदर जिस में मैं हूँ कोई जज़ीरा तन्हा ज़ीस्त सफ़र है तन्हाई का आना तन्हा जाना तन्हा उस को बताओ जिस्म से कट कर रह नहीं सकता साया तन्हा उफ़ ये मौज-ए-तूफ़ान-ए-अलम हाए दिल का सफ़ीना तन्हा जिस को चाहा जान से बढ़ कर आख़िर उस ने छोड़ा तन्हा घर से बाहर निकलो किसी दिन इतना भी क्या रहना तन्हा अब वो कहीं और मैं हूँ कहीं उम्र कटेगी तन्हा तन्हा 'काशिर' की है अपनी ही दुनिया होगा कहीं पर बैठा तन्हा