अब मुझे रंज क्यों न हो इस दिल-ए-सोगवार से वो जो तड़प तड़प गए नाला-ए-बे-क़रार से कौन ये जान-ए-रंग-ओ-बू रूठ गया बहार से ग़ुंचे भी हैं उदास से गुल भी हैं सोगवार से भीगी हुई फ़ज़ा में है अब्र भी है हवा भी है ऐसे में छेड़ मोहतसिब कुफ़्र है बादा-ख़्वार से सुब्ह-ए-अज़ल से ता-अबद दौर-ए-फ़िराक़ अल-अमाँ ऐ कि टपक पड़े न दिल दीदा-ए-इंतिज़ार से फ़र्द-ए-अमल सियाह हो दिल तो हसीं है वाइज़ा आज भी मुतमइन है 'राज़' रहमत-ए-किर्दगार से