जो फ़ासला है मैं उस को मिटा के देखूँगा मैं उस के चेहरे से पर्दा हटा के देखूँगा वो अपने हुस्न मिरी आरज़ू के ज़ो'म में है मैं उस के बुत को किसी दिन गिरा के देखूँगा वो तख़्त छोड़ के अपना ज़रूर आएगा मैं आसमान को सर पे उठा के देखूँगा मिरे फ़िराक़ में उस का भी हाल मुझ सा है मैं आप जा के या उस को बुला के देखूँगा ज़माना देखेगा इक हश्र आज बोतल में मैं अब शराब में आँसू मिला के देखूँगा मिसाल-ए-मूसा मिरी आँख में है ख़ू-ए-जमाल में जा के तूर पे ख़ुद को जला के देखूँगा रुकेगा कौन ग़रीबी में मेरे साथ 'रज़ा' चराग़-ए-ख़ेमा-ए-दिल को बुझा के देखूँगा