अब न होली है न दिवाली है गोया तहज़ीब मिटने वाली है ज़िंदगी फ़र्श पे पड़ी थी और मैं ने आग़ोश में उठा ली है सब मुरव्वत के खेत बंजर हैं सारे गाँव में ख़ुश्क-साली है ख़्वाहिशों से भरा हुआ है दिल ये अलग बात जेब ख़ाली है अब तो सिगरेट भी पी रहे हो तुम तुम ने हालत ये क्या बना ली है सारे मजबूर देने वाले हैं कोई जाबिर हुआ सवाली है मुड़ के आते नहीं हो गाँव में अपनी दुनिया कहाँ बसा ली है फिर से झरना रवाँ है आँखों से कोह-ए-रुख़्सार पर बहाली है 'फ़ैज़' अहल-ए-ज़बान के नज़दीक एक बे-वज़्न शे'र गाली है