अब तक भी दर्द सहने की आदत नहीं हुई यानी कि तुम को यार मोहब्बत नहीं हुई करते हैं चल ऐ दिल मिरे कोशिश ये आख़िरी डोली में बस वो बैठी है रुख़्सत नहीं हुई कहना तो था पर उस ने यूँ देखा मिरी तरफ़ मेरे लबों से कोई भी हरकत नहीं हुई बुढ़िया जो घर में रहती थी जिस दिन से मर गई बाद उस के घर में कोई भी बरकत नहीं हुई सच है कि ज़िक्र-ए-इश्क़ से बचता रहा हूँ मैं सच ये भी है मिरी कभी हिम्मत नहीं हुई यादों में उस की आज भी बहते हैं अश्क यूँ जैसे ये कल की बात हो मुद्दत नहीं हुई