अब ज़रा सी भी ख़ुशी पे यार दुखने लगते हैं मुस्कुरा देने से भी रुख़्सार दुखने लगते हैं राह-ए-उल्फ़त में मिले हर आबलों को सह गया क्या दुखेंगे ज़ख़्म अब ख़ुद ख़ार दुखने लगते हैं चाहता हूँ मैं कि तेरा नाम हर मिसरे में हो ज़िक्र से तेरे मगर अश'आर दुखने लगते हैं जी में आता है कि तुझ पे छेड़ दूँ कोई ग़ज़ल याद कुछ आता है दिल के तार दुखने लगते हैं उस को लगता है कोई शिकवा नहीं मुझ को मगर कुछ न कह सकने से लब हर बार दुखने लगते हैं बात तो होगी नहीं पर देखने आया करो वर्ना अपनी क़ब्र में हम यार दुखने लगते हैं