अब तेरी मोहब्बत में जो बीमार है बीमार जीता है न मरता है न इस पार न उस पार वा'दे के लिए लब भी हिलाना तुम्हें दुश्वार बुत की तरह ख़ामोश न इक़रार न इंकार निकले जो मरीज़ों की अयादत को वो घर से कुछ सोच के हर अच्छा भला बन गया बीमार है लब पे अभी तुम तो अभी तू अरे तौबा क्या आप की गुफ़्तार है क्या आप की गुफ़्तार उफ़ अर्ज़-ए-तमन्ना पे तिरी नीची निगाहें इक़रार का इक़रार है इंकार का इंकार इस दौर में इंसाँ का अजब हाल है 'शब्बर' जीने का भी अरमान है जीने से भी बेज़ार