ये राज़ किस से बताऊँ ये बात किस से कहूँ हदीस-ए-शौक़ का उनवाँ है एक हर्फ़-ए-जुनूँ ग़ुबार-ए-राह को मंज़िल का नाम दूँ कैसे ख़िज़ाँ को सुब्ह-ए-बहाराँ मैं किस तरह समझूँ जब ए'तिबार नहीं ख़ुद निगाह पर अपनी मैं कम-निगाही-ए-साक़ी का ज़िक्र कैसे करूँ तमाम उम्र इसी इंतिज़ार में गुज़री मैं उन से हर्फ़-ए-तमन्ना अभी कहूँ न कहूँ अदा अदा में किसी की पयाम-ओ-शौक़-ओ-तलब नज़र नज़र में किसी की फ़साना-ओ-अफ़्सूँ न हम-जलीस ही रहबर न हम-क़दम राही मैं किस को ख़िज़्र कहूँ किस को राज़दाँ समझूँ चमन को लूट रहे हैं चमन के रखवाले कोई बताए मैं साज़-ए-बहार क्या छेड़ूँ