दिल को ग़म-ए-हबीब से बहला रहा हूँ मैं हर ग़म से बे-नियाज़ हुआ जा रहा हूँ मैं मा'सूमियत तो देखिए आग़ाज़-ए-शौक़ की उन की नवाज़िशों से भी घबरा रहा हूँ मैं हर ग़ुंचा दिल-गिरफ़्ता है हर गुल है सीना-चाक शायद भरी बहार को याद आ रहा हूँ मैं सर-गर्मी-ए-तलाश-ए-हक़ीक़त न पूछिए मंज़िल से बे-नियाज़ चला जा रहा हूँ मैं रंगीनी-ए-बहार नज़र में समाए क्या उस अंजुमन से उठ के चला आ रहा हूँ मैं दुनिया मिरे ख़ुलूस का देगी जवाब क्या दुश्मन के दर्द पर भी तड़पता रहा हूँ मैं साक़ी तिरे करम की ज़रूरत नहीं मुझे दिल में सुरूर-ए-तिश्ना-लबी पा रहा हूँ मैं वो दिल जो मेरे हाल पे रोया है बारहा उस दिल से इंतिक़ाम लिए जा रहा हूँ मैं काटे हैं दिन क़फ़स में असीरी के यूँ 'बहार' याद-ए-चमन में ज़मज़मा-आरा रहा हूँ मैं