अब तो दराज़ एक भी दस्त-ए-दुआ' नहीं सब हैं ख़ुदा यहाँ पे कोई ना-ख़ुदा नहीं क़द्रें बदल चुकी हैं जुनून-ए-वफ़ा की अब शर्त-ए-वफ़ा बदल दो कोई बेवफ़ा नहीं देखो गली में तुम को सदा दे रहा है कौन आवाज़ देने वाले सभी तो गदा नहीं 'इक़बाल' बन के शिकवा करो तो है बात कुछ इस दौर में तरीक़ा-ए-'हाली' रवा नहीं मैं ज़िंदगी के शहर में नग़्मों की जान था सहरा का अब सुकूत हूँ कोई सदा नहीं अब ले चलो 'उमर' किसी मयख़ाने में मुझे दैर-ओ-हरम में मेरे मरज़ की दवा नहीं