का'बा है कभी तो कभी बुत-ख़ाना बना है ये दिल भी अजब चीज़ है क्या क्या न बना है जिस रोज़ से दिल आप का दीवाना बना है एक लफ़्ज़ भी निकला है तो अफ़्साना बना है ये आज का दिन हश्र का दिन तो नहीं यारब अपना था जो कल तक वही बेगाना बना है तिनकों का तो बस नाम है सच्चाई यही है इक जेहद-ए-मुसलसल है जो काशाना बना है तख़रीब के पर्दे में ही ता'मीर है साक़ी शीशा कोई पिघला है तो पैमाना बना है तकमील-ए-वफ़ा होश में मुमकिन ही नहीं था दीवाना समझ बूझ के दीवाना बना है दुनिया में कोई मोल न था 'शौक़' का लेकिन क़िस्मत है जो संग-ए-दर-ए-जानाना बना है