अभी किसी को सुनाई नहीं दिया हूँ मैं पुराने बाग़ों में इक ताज़ा चहचहा हूँ मैं नहीं हूँ हामी मैं नारे लगाने वालों का उसी हुजूम में लेकिन खड़ा हुआ हूँ मैं पलट के देखने की हो अगर तुझे फ़ुर्सत वरक़ की दूसरी जानिब लिखा हुआ हूँ मैं मैं साँस लेने की ज़हमत में तो नहीं पड़ता मुझे बताया तो होता कि मर गया हूँ मैं वो जिस की आँखें नहीं हैं वो देखता है मुझे जो रू-नुमा नहीं होता है वाक़िआ' हूँ मैं