सितम-शिआ'र ज़माने पे ख़ौफ़ तारी रख मिले तू जब भी शरीफ़ों से इंकिसारी रख तुझे मिलेगा तिरा मुद्दआ' ज़रूर इक दिन मगर है शर्त मुसलसल तलाश जारी रख ये तेरा हुस्न कहीं हादिसा न बन जाए सितम-ज़रीफ़ ज़माने से होशियारी रख सफ़र पे कब तुझे जाना पड़े ये क्या मालूम जो काम वक़्त पे आए वही सवारी रख तुझे वक़ार बचाना है हर तरह अपना हर एक बात की दुनिया से होशियारी रख उन्हीं के फ़ैज़ से हल होंगी मुश्किलें सारी ख़ुदा-परस्त बुज़ुर्गों की जानकारी रख न जीने देंगे वतन में तिरे तुझे 'अह्मर' मुनाफ़िक़ों के लिए तू भी ज़ो'म-दारी रख