अभी नख़्ल-ए-दिल में खिलावट बहुत है मुझे अब भी तुम से लगावट बहुत है न सुर्ख़ी न ग़ाज़ा न काजल न गजरा तिरी सादगी में सजावट बहुत है कभी फ़िल्म-नगरी से मरऊब मत हो कि इस में मुकम्मल बनावट बहुत है बड़ी पुरकशिश गुफ़्तुगू है ज़बाँ पर मगर दिल में उन के गिरावट बहुत है न सेहत बनेगी न ताक़त मिलेगी दवा में ग़िज़ा में मिलावट बहुत है ये इल्म और तहक़ीक़ के मशग़लों में न महसूस होती थकावट बहुत है पराए ही बढ़ कर मिरे काम आए अब अपनों में 'नादिर' रुकावट बहुत है