दिल ही में नाला-ए-शब-गीर उलट जाता है ना-मुवाफ़िक़ है हवा तीर उलट जाता है नाले उस की निगह-ए-क़हर से रुक जाते हैं तीर से मुर्ग़-ए-हवागीर उलट जाता है जल्वा-गह में तिरी क्या ठहरूँ कि साया नाचार जब हुआ रूकश-ए-तन्वीर उलट जाता है ठहरा इज़हार-ए-वफ़ा शिकवा-ए-वस्ल-ए-अग़्यार रश्क से हासिल-ए-तक़रीर उलट जाता है मुँह ख़राबात में रिंदों से छुपाए क्या शैख़ नश्शे में दामन-ए-तज़्वीर उलट जाता है ज़ौक़-ए-तहसीन 'ज़की' किस क़दर अल्लाह-अल्लाह दम-ए-बिस्मिल दम-ए-तकबीर उलट जाता है