अभी से नक़्श-ए-हैरत बन गए क्या देखने वाले तजल्ली चाहने वाले तमाशा देखने वाले नहीं कम जोश-ए-वहशत का तमाशा देखने वाले जुनूँ तो ख़ुद ही कर लेता है पैदा देखने वाले लिहाज़-ए-ताब-ए-दिल ऐ बे-महाबा देखने वाले पशेमाँ भी हुए हैं उन का जल्वा देखने वाले सदा-ए-लन-तरानी अब सला-ए-मन्यरानी है करें ताब-ए-दिल-ओ-दीदा मुहय्या देखने वाले दिल-ए-नज़्ज़ारा जो सदक़े तिरी शान-ए-तजल्ली पर ब-हर-सूरत हैं महरूम-ए-तमाशा देखने वाले अबस है दीदा-ओ-दिल को गिला बे-इल्तिफ़ाती का अभी हैं ना-शनास-ए-रम्ज़-ओ-ईमा देखने वाले 'रशीद' आख़िर करूँ किस किस से शरह-ए-इब्तिला-ए-दिल न कर लूँ जम्अ क्यों मिस्ल-ए-ज़ुलेख़ा देखने वाले