अभी तक याद है मुझ को मिरा सरशार हो जाना नज़र का ना-गहाँ उठना तिरा दीदार हो जाना मिरी हस्ती का हासिल बन गया वो क़ीमती लम्हा वो इक टुक देखना उन का मिरा गुलनार हो जाना वही लम्हा ग़नीमत जानिए जो हँस के कट जाए सुकूँ खोना है यकसर ज़िंदगी का बार हो जाना अभी कल खेलते फिरते थे आँखें मीच कर हम तुम तुम्हीं से पड़ रहा है अब हमें हुश्यार हो जाना नई ख़्वाहिश हर इक लम्हा तमन्ना चाँद छूने की हुमकना दिल का सीने में मिरा बेज़ार हो जाना न दिल में जज़्बा-ए-ईमाँ न सौदा सरफ़रोशी का तो फिर क्यों चाहते हो आग का गुलज़ार हो जाना दबी है फिर कोई सेहन-ए-चमन में आज चिंगारी जो तुम जाना गुलिस्ताँ में ज़रा होश्यार हो जाना जो दिल का इम्तिहाँ चाहो तो फिर कच्चा घड़ा ला दो वफ़ा में डूब जाना है नदी के पार हो जाना कहाँ तक साथ देगा जज़्बा-ए-ईसार 'फ़रज़ाना' लहू देना चमन को और पस-ए-दीवार हो जाना