अपनों ने उजाड़ा है चमन जान गए हैं पर्दों में छुपा कौन है पहचान गए हैं तपती हुई सड़कों पे सफ़र हम ने किया है अब बर्फ़ जो देखी है तो औसान गए हैं विश्वास की गिरती हुई दीवार के साए क़दमों से कुचलते हुए ईमान गए हैं माना कि दिया उस ने हमें रुतबा-ए-आली जन्नत से निकाले भी तो इंसान गए हैं घर अपना समझ कर जो रहे फ़र्श-ए-ज़मीं पर रोते हुए दुनिया से वो मेहमान गए हैं जो फूल की ख़ुशबू को छुपाने में लगे थे नाकाम मोहब्बत में वो इंसान गए हैं उन से तो न थी कोई हमें बुग़्ज़-ओ-अदावत बे-कार सी बातों को बुरा मान गए हैं