अब्र तो बे-हिसाब बरसा है क़तरे क़तरे को दिल ये तरसा है ख़ौफ़-ए-तन्हाई और वीरानी सारा मंज़र ही मेरे घर सा है हादिसा गुज़रे एक उम्र हुई अब भी क्यों दिल में एक डर सा है ख़्वाहिशें हैं कि गिरती दीवारें दिल भी उजड़ा हुआ नगर सा है झूम उट्ठी है 'राज' बज़्म-ए-ग़ज़ल नश्शा शे'रों में उस नज़र सा है