अपने हाथों में मोहब्बत से मिरा हात लिए चाँदनी आई मगर हिज्र की सौग़ात लिए दिल के जलते हुए ज़ख़्मों के नगर में ऐ दोस्त कौन फिर आया है अश्कों की ये बरसात लिए देख ये मंज़र-ए-दिल-दोज़ कि है क़ाबिल-ए-दीद सुब्ह-ए-नौ मेरे लिए आई सियह रात लिए बन गई जो कभी नग़्मा कभी जुगनू कभी फूल दे के सरमाया-ए-जाँ हम ने वो जज़्बात लिए मेरे घर में तो चराग़ों का धुआँ तक भी नहीं रात निकली है हसीं चाँद की बारात लिए दिल जो टूटा तो हर इक साज़-ए-तरब टूट गया 'राज' हम रोते रहे दर्द के जज़्बात लिए