अब्र छाएगा तो बरसात भी हो जाएगी दीद होगी तो मुलाक़ात भी हो जाएगी ऐ दिल-हुस्न-ए-तलब मश्क़-ए-तसव्वुर तू बढ़ा फिर जो चाहेगा वही बात भी हो जाएगी सर झुकाए हुए बैठे हो अबस बादा-कशो जाम उठाओगे तो बरसात भी हो जाएगी आज उस ने नए अंदाज़ से देखा है मुझे ग़ालिबन आज कोई बात भी हो जाएगी बे-ख़ुदी सिर्फ़ दलील-ए-ग़म-ए-पिन्हाँ ही नहीं एक दिन काशिफ़-ए-हालात भी हो जाएगी बुल-हवस दहर के रंगीन मनाज़िर से न खेल दिन हुआ है तो यहाँ रात भी हो जाएगी जान दे कर तिरी महफ़िल में कभी जान-'अज़ीज़' जौर की तेरे मुकाफ़ात भी हो जाएगी