अब्र सरका चाँद की चेहरा-नुमाई हो गई इक झलक देखा उसे और आश्नाई हो गई सो गया तो ख़्वाब अपने घर में ले आए मुझे जैसे मेरी वक़्त से पहले रिहाई हो गई मेरे कमरे में कोई तस्वीर पहले तो न थी उस को देखा सादे काग़ज़ पर छपाई हो गई मैं खुली छत से उतर आया भरे बाज़ार में सामने खिड़की की रौनक़ जब पराई हो गई उड़ रही है हर तरफ़ सूरज के अंगारे की राख बुझ गया दिन जल के ख़ाकिस्तर ख़ुदाई हो गई काश जीते-जी शजर साए में ले लेता मुझे वस्ल के मौसम से पहले ही जुदाई हो गई बह चुके आँसू तो चश्म-ए-सब्ज़ का रंग उड़ गया रफ़्ता रफ़्ता ज़र्द इस दरिया की काई हो गई हो गई 'शाहिद' वो चशम-ए-संग पानी क्या हुआ किस तरह नाख़ुन से पत्थर पर खुदाई हो गई